राष्ट्र के प्रति समर्पित एवं बालक स्वरूप भगवान की पूजा में मग्न… अखंड कार्यरत संगठन गीता परिवार के अनगिनत निष्ठावान कार्यकर्ता एक परम वैभवशाली राष्ट्र के स्वप्न को साकार करने के लिए कार्य कर रहे हैं। गीता परिवार में संस्कार कार्य सिर्फ़ श्लोक-स्तोत्र पाठ करने तक ही सीमित नहीं है। बल्कि बालकों के शरीर, मन और बुध्दि के सम्पूर्ण विकास से उन्हे ‘सम्यक् आकार’ अर्थात संस्कार देने का कार्य शहरों व गाँवों में स्थित सैकड़ों केंद्रों में चल रहा है। गीता परिवार के कार्य का आधार है परमपूज्य स्वामी श्री गोविंददेवगिरिजी द्वारा दिए गए पंचसूत्र :
1) भगवद्भक्ति
2) भगवद्गीता
3) भारतमाता
4) विज्ञान दृष्टि
5) स्वामी विवेकानंद
पूज्य स्वामी श्री गोविंददेवगिरिजी महाराज
गीता परिवार के संस्थापक पूज्य स्वामी श्री गोविंददेवगिरिजी महाराज (पूर्वाश्रम के आचार्य श्री किशोरजी व्यास) कांची कामकोटि पीठ के प.पू. शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी महाराज एवं पूज्य स्वामी श्री सत्यमित्रानंदजी महाराज के शिष्य हैं। पिछले अनेक दशकों से श्रीमद्भागवत, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, योग वशिष्ठ आदि पर प्रवचन करते हुए स्वामी जी सम्पूर्ण देश तथा विदेशों में भी संचार कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंदजी आपके प्रेरणास्तोत्र हैं। कथा – कार्यक्रमों तथा सहृदय दाताओं से प्राप्त धनराशि का सदुपयोग आपके द्वारा स्थापित विविध संस्थाओं के माध्यम से जनकल्याण के कार्यों में होता है।
एक संस्कार सम्पन्न, संगठित तथा वैभवशाली भारत का स्वप्न आपने अपनी आँखों में संजोया हुआ है तथा उसी स्वप्नपूर्ति की दिशा में आगे बढ़ते हुए बालकों के विकास तथा संस्कार के ध्येय को सामने रख 1986 में महाराष्ट्र के संगमनेर में आपने गीता परिवार की स्थापना की। बाल संस्कार केंद्र तथा शिविरों के माध्यम से अब यह कार्य देश के अनेक राज्यों तथा गाँवों तक पहुँच चुका है। स्वामीजी द्वारा स्थापित महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान के माध्यम से 15 राज्यों में 62 वेदपाठशालाओं में हजारों छात्रों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। वेदों का रक्षण तथा संवर्धन इस कार्य का उद्देश्य है।